Sonu Nigam
Ilaahi
इलाही, इलाही
इलाही, इलाही

जाना चाहे बादलों के पार भी
और ज़मीनों से जुड़े हैं तार भी
जाना चाहे बादलों की पार भी
और ज़मीनों से जुड़े हैं तार भी
जाने तलाशे है क्या, ये दिल परिंदा
ढूँढे है घर का पता, ये दिल परिंदा
टुकड़े-टुकड़े होके नादाँ, रहता है ज़िंदा
जाने तलाशे है क्या, ये दिल परिंदा
ढूँढे है घर का पता, ये दिल परिंदा
इलाही, इलाही...

सपने मेरे ऐसे टूटे
जैसे तारे तेरे
अबके आँखें ऐसे बरसीं
बादल हारे तेरे
मेरे हाथों से क्यूँ, गिर गयी हर दुआ
सब का है तू खुदा, क्यूँ ना मेरा हुआ
इलाही, इलाही...

अपने हाथों उजड़े हैं हम
शिकवा भी क्या करें
ज़र्रा-ज़र्रा बिखरे हैं हम
जोड़े से क्या जुड़े
हम वो पढ़ ना सके
जो भी तूने लिखा
चल हथेली से अब
ये लकीरें मिटा
इलाही, इलाही...
जाने तलाशे है क्या...