Arijit Singh
Safar
[Verse 1]
अब ना मुझको याद बीता
मैं तो लम्हों में जीता
चला जा रहा हूँ
मैं कहाँ पे जा रहा हूँ
कहाँ हूँ
इस यकीन से मैं यहाँ हूँ
की ज़माना ये भला है
और जो राह में मिला है
थोड़ी दूर जो चला है
वो भी आदमी भला था
पता था ज़रा बस ख़फा था
वो भटका सा राही
मेरे गाँव का ही
यो रस्ता पुराना
जिसे आना ज़रूरी था
लेकिन जो रोया
मेरे बिन
वो एक मेरा घर था
पुराना सा डर था
मगर अब ना मैं अपने घर का रहा

[Chorus]
सफ़र का ही था
मैं सफर का रहा
ओ ओ
इधर का ही हूँ ना
उधर का रहा
सफ़र का ही था
मैं सफर का रहा
इधर का ही हूँ ना
उधर का रहा
सफ़र का ही था
मैं सफर का रहा
मैं रहा मैं रहा
मैं रहा
मैं रहा
[Verse 2]
नील पत्थरों से मेरी दोस्ती है
चाल मेरी क्या है
राह जानती है
जाने रोज़ाना
ज़माना वोही रोज़ाना
शहर शहर फुरसतों को बेचता हूँ
खाली हाथ जाता खाली लौटता हूँ
ऐसे रोज़ाना, रोज़ाना खुद से बेगाना
जबसे गाँव से मैं शहर हुआ
इतना कड़वा हो गया की ज़हर हुआ
मैं तो रोज़ाना
ना चाहा था ये
हो जाना मैंने
ये उमर वक़्त रास्ता गुज़रता रहा
सफ़र का ही था
मैं सफ़र का रहा
मैं रहा वो
मैं रहा वो