Anu Malik
Kyun
क्यूँ फूलों के खिले-खिले रंग उड़ गए?
क्यूँ फूलों के खिले-खिले रंग उड़ गए?
क्यूँ इन दिनों खुद से रहती हूँ मैं
ख़फ़ा-ख़फ़ा, ख़फ़ा, ख़फ़ा?

क्यूँ फूलों के उड़े-उड़े रंग खिल गए?
क्यूँ फूलों के उड़े-उड़े रंग खिल गए?
क्यूँ इन दिनों होश में है मेरे नशा-नशा, नशा-नशा?
ओ, क्यूँ फूलों के खिले-खिले रंग उड़ गए?

तेरी-मेरी तकरारों से बना दिल का ये रिश्ता है
आईना जो मैं देखूँ तो तेरा चेहरा ही दिखता है
जब से मुझे तुम मिली

जाने कैसे मुलाक़ातों में, यूँ ही ऐसी-वैसी बातों में
करे झूटे-मूटे वादे थे
किसी छोटे से बहाने से, पा के तुझे खो दिया

मेरी ही है ख़ता, मेरी ही है सज़ा
फिर भी दिल कहे, "ये क्यूँ हुआ?"

क्यूँ इन दिनों खुद से रहती हूँ मैं
ख़फ़ा-ख़फ़ा, ख़फ़ा, ख़फ़ा?
क्यूँ फूलों के उड़े-उड़े रंग खिल गए?

आज से जो मेरे कल होंगे, तेरी आँखों में वो दिखते हैं
तेरी बातों के जो अक्षर हैं, मेरी दास्ताँ वो लिखते हैं
ऐसा मुझे क्यूँ हुआ?
धुआँ-धुआँ सी कहानी है, तभी आँखों में भी पानी है
गालों से ये जो गुज़रती है, तेरे ग़म की निशानी है
मिट सी गई हर दुआ

मेरी ही है ख़ता, मेरी ही है सज़ा
फिर भी दिल कहे, "ये क्यूँ हुआ?"

क्यूँ इन दिनों खुद से रहती हूँ मैं
ख़फ़ा-ख़फ़ा, ख़फ़ा, ख़फ़ा?
क्यूँ फूलों के खिले-खिले रंग उड़ गए?
क्यूँ फूलों के उड़े-उड़े रंग खिल गए?