Zubeen Garg
Kya Raaz Hai
मरहबा, मरहबा
मरहबा, मरहबा, मरहबा
मरहबा, मरहबा
मरहबा, मरहबा, मरहबा

मैं रू-ब-रू आसमाँ के, अक्स मेरी दास्ताँ के
छा गएँ सबकी निगाहों में
मुट्ठी में है सारा जहाँ ये, मैंने जो चाहा यहाँ पे
आ गया मेरी पनाहों में

ये शोहरतों के ताज हैं, ये दौलतें जो आज हैं
सब कुछ यहाँ एक राज़ है, हाँ, राज़ है
खुद पे मुझे जो नाज़ है, ये जो नया अंदाज़ है
सब कुछ यहाँ एक राज़ है, हाँ, राज़ है

मरहबा, मरहबा
मरहबा, मरहबा

मोरे सैयाँ, सैयाँ, मोरे सैयाँ
काहे छोड़ी मोरी बैयाँ? मोरी बैयाँ
मोरे सैयाँ (सैयाँ) सैयाँ, सैयाँ

कैसे मोड़ पे लाया मुझको मेरा फ़ैसला?
हाथ से मंज़िल, पैरों से छूटा है रास्ता
मेरी खताओं की मैंने अब पाई है सज़ा
आगे अब क्या मेरा हश्र हो, जाने वो खुदा
मरहबा, मरहबा
मरहबा, मरहबा, मरहबा
मरहबा, मरहबा
मरहबा, मरहबा, मरहबा

मैं रू-ब-रू आसमाँ के, अक्स मेरी दास्ताँ के
छा गएँ सबकी निगाहों में
मुट्ठी में है सारा जहाँ ये, मैंने जो चाहा यहाँ पे
आ गया मेरी पनाहों में

ये शोहरतों के ताज हैं, ये दौलतें जो आज हैं
सब कुछ यहाँ एक राज़ है, हाँ, राज़ है (राज़ है)
खुद पे मुझे जो नाज़ है, ये जो नया अंदाज़ है
सब कुछ यहाँ एक राज़ है, हाँ, राज़ है