Raftaar
Mantoiyat
[Raftaar & Nawazuddin Siddiqui "Mantoiyat" के बोल]

[Intro: Nawazuddin Siddiqui]
Raftaar
सवाल यह है कि जो चीज़ जैसी है
उसे वैसे ही पेश क्यों ना किया जाए
मैं तो बस अपनी कहानियों को एक आईना समझता हूँ
जिसमे समाज अपने आप को देख सके, देख सके

[Verse 1: Raftaar]
हाँ, आईना ना देखना चाहे समाज मेरा
हाँ, पूछे मेरा कल, ना देखते यह आज मेरा
खोदते-खरोंदते यह मेरी गलतियां
मैं भी चल दिया, मेरी सोच पे है राज मेरा
कान बंद, आँखें बंद, इनके मुंह पे ताले
इनमें ज़ोर ना कि सत्य पे प्रकाश डाले
बोले सच जो उसके चेहरे पे तेज़ाब डाले
घूमे फिर खुले में और जले जो वो नकाब डाले
Off, off, off है, दिमाग सबका off है
"ज़माना क्या कहेगा", इसका ही तो सबको खौफ़ है
दबके जीते हैं, दबाने के यह आदी हैं
Sex निषेद है तो इतनी क्यों आबादी है?
लोग यह है आत्मा से खोखले
खुद करे तो ठीक, बाकी गलत..., दोगले!
गाली दे दूँ हिंदी में तो बोले ऐसा क्यों किया
Fuck क्यों है cool, जाने गलत क्यों है चूतिया
[Pre-Hook: Nawazuddin Siddiqui]
क्या इस तरह के अल्फाज़ हमें सड़कों पे सुनाई नहीं पड़ते?

[Hook: Nawazuddin Siddiqui]
मंटो एक इंसान है
मंटो एक इंसान है
मंटो एक इंसान है
मंटो एक इंसान है
मुझपर इल्ज़ाम है
मुझपर इल्ज़ाम है
मुझपर इल्ज़ाम है
मंटो एक इंसान है

[Verse 2: Raftaar]
जात में यह बांटते हैं, बांट के यह काटते हैं
कटने वाले खाट पे हैं, इनकी मौज रात में हैं
लाल बत्ती वाली गाड़ी, glass इनके हाथ में है
राजनीति में हैं चोर, पुलिस इनके साथ में
मेरी बातें तुमको सच नहीं लगती
सच्ची बातें तुमको यारा पच नहीं सकती
मुझसे नासमझ हैं दुगनी मेरी age के
एक पैर कब्र में, यह भूखे हैं दहेज के
बेटियों को मारते, बेटियां ना पालते
बेटियों पे दूसरों की नज़रें गंदी डालते
लड़कियां पटाके उनको बंदी बोलते हैं
और जो राज़ी ना हो उनको साले रंडी बोलते हैं
बाप रोज़ माँ पे ठोस हाथ जो उठाएगा
बेज़ुबान बोलने से पहले सीख जाएगा
कि मर्द तब बनेगा जब तू औरतें दबाएगा
सोच यह रही तो जल्दी देश डूब जाएगा
[Pre-Hook: Nawazuddin Siddiqui]
मैं उस society की चोली क्या उतारूंगा जो पहले से ही नंगी है
उसे कपड़े पहनाना मेरा काम नहीं है
मैं काली तख्ती पर सफेद chalk इस्तेमाल करता हूँ
ताकि काली तख्ती और नुमाया हो जाए

[Hook: Nawazuddin Siddiqui]
मंटो एक इंसान—

[Bridge: Raftaar]
मैंने घंटो पढ़ा है तुमको मंटो
तुम्हारे जैसा बनूँ करे तो मेरा मन तो
इन बंदों को सच नहीं दिखता
सत्तर साल आज़ादी के, सच आज भी नहीं बिकता

[Outro: Nawazuddin Siddiqui]
अगर आप मेरी कहानियों को बर्दाश्त नहीं कर सकते
तो इसका मतलब यह है
कि यह ज़माना ही नाकाबिल-ए-बर्दाश्त है