अलग तुझमें असर कुछ है
कि दिखता नहीं मगर कुछ है
अलग तुझमें असर कुछ है
कि दिखता नहीं मगर कुछ है
फ़िदा हूँ मैं तो एक नज़र, बस एक नज़र
बस एक नज़र तक के
लगे भी तो ये और किधर, अब और किधर
दिल संग तेरे लग के
सही वो भी लगे मुझको
ग़लत तुझमें अगर कुछ है
अलग तुझमें असर कुछ है
तुम से किरण धूप की
तुम से सियाह रात है
तुम बिन मैं बिन बात का
तुम हो तभी कुछ बात है
तुम से किरण धूप की
तुम से सियाह रात है
तुम बिन मैं बिन बात का
तुम हो तभी कुछ बात है
तेरी ये सोहबत हुई मुझे नसीब है जब से
थोड़ा तो बेहतर, ख़ुदा क़सम, हुआ हूँ मैं मुझसे
है तू ही तू तसव्वुर में
है तू ही तू तसव्वुर में
कहाँ अपनी ख़बर कुछ है
अलग तुझमें असर कुछ है, हो
तुम से किरण धूप की
तुम से सियाह रात है
तुम बिन मैं बिन बात का
तुम हो तभी कुछ बात है
तुम से किरण धूप की
तुम से सियाह रात है
तुम बिन मैं बिन बात का
तुम हो तभी कुछ बात है
करिश्मे सच में होते हैं (तुम से किरण धूप की)
इस बात की तू मिसाल है (तुम से सियह रात है)
सवालों का जवाब है (तुम बिन मैं बिन बात का)
या ख़ुद ही तू एक सवाल है?
जितनी भी तारीफ़ करूँ मैं (तुम से किरण धूप की)
वो कम है (तुम से सियाह रात है)
क़सम से, तू कमाल है (तुम बिन मैं बिन बात का)
तू कमाल है (तुम हो तभी कुछ बात है)
तू कमाल है
तू कमाल है
कि दिखता नहीं मगर कुछ है