[Intro]
उर्दू के जैसा ये इश्क़ मेरा
ना-समझ, तू समझेगा कैसे?
लिखती मैं रहती हूँ दिन-रात तुझको
पागल, तू समझेगा कैसे?
इतना है शोर यहाँ इस शहर में
इश्क़ मेरा सँभलेगा कैसे?
[Verse 1]
कश्मीर जैसी जगह ले चलो ना
बर्फ़ पे सिखाऊँगी प्यार तुझे
झीलों पे ऐसे उड़ेंगे साथ दोनों
इश्क़ पढ़ाऊँगी, यार, तुझे
[Verse 2]
ठंडी सी रातें, पेड़ों की ख़ुशबू
जुगनूँ भी करते हैं बातें वहाँ
कहते हैं, जन्नत की बस्ती है वहाँ पे
सारे फ़रिश्ते रहते हैं जहाँ
बादल भी रहते हैं ऐसे वहाँ पे
सच में वो नीले हों जैसे
[Chorus]
उस नीले रंग से मुझे भी रंग दो ना
आसमाँ दिखाऊँगी, यार, तुझे
ऐसे उड़ेंगे मिलके साथ दोनों
जन्नतें घूमाऊँगी, यार, तुझे
[Verse 3]
ले तो चलूँ मैं तुझको वहाँ पे
लेकिन वहाँ पे सर्दी बड़ी है
कब मैं लगाऊँगा तुझको गले
ख़ुदा की क़सम, मुझे जल्दी बड़ी है
[Verse 4]
ओढ़ूँगी ऐसे मैं तुझको, पिया
सर्दी मुझको सताएगी कैसे?
तुझको लगाऊँगी ऐसे गले
कोई गुम हो जाता है जैसे
किस बात की देर फिर तू लगाए है
ख़ुद को अब रोकूँ मैं कैसे?
[Chorus]
उस नीले पानी का जो साफ़ झरना है
उससे पिलाऊँ, आ, प्यार तुझे
झीलें, ये नदियाँ, ये बर्फ़ों के टीले
ला के सब दे दूँ मैं, यार, तुझे